राम मंदिर का सबसे बड़ा रहस्य… एक आदेश से घबरा गए थे नेहरू, डीएम नायर ने मुख्यमंत्री को भी कर दिया था अनसुना

अयोध्या। ‘मैं अयोध्या… मेरे लिए निर्णायक थी वह रात और तत्कालीन जिलाधिकारी केके नायर। नायर ने तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत के आदेश को मानने से इनकार कर दिया था। वह न होते तो रामलला के प्राकट्य की पटकथा अधूरी रह जाती’। यह यादें रामनगरी अयोध्या की हैं, जहां अब राम मंदिर का निर्माण हो रहा है।

अयोध्या अपने संघर्ष को कुछ इस प्रकार याद करती है-

यह तत्कालीन जिलाधिकारी केके नायर जैसे गिनती के लोगों की देन है कि रामलला को उनकी जन्मभूमि से हटाने का यत्न विफल होता गया। उन्हें फैजाबाद का जिलाधिकारी बने छह माह से ही कुछ अधिक हुआ था। यद्यपि वह तब तक हमारा इतिहास-भूगोल समझ चुके थे।

इसी बीच 1949 ई. की 22-23 दिसंबर की वो रात हुई, जब रामलला के प्राकट्य की ज्वलंत घटना सामने आ गई। केंद्र की तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार एवं प्रदेश की गोविंद वल्लभ पंत की सरकार मूर्ति प्राकट्य के बाद ही सक्रिय हुई और जिलाधिकारी केके नायर पर मूर्ति हटवाए जाने का दबाव बढ़ने लगा।

रिपोर्ट में बड़ा मंदिर बनाए जाने का सुझाव

प्रधानमंत्री नेहरू ने राज्य सरकार को जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया था। राज्य के मुख्यमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने केके नायर को वहां जाकर पूछताछ करने का निर्देश दिया।

नायर ने अपने अधीनस्थ तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह को जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा। उनकी रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदू अयोध्या को भगवान राम (रामलला) के जन्मस्थान के रूप में पूजते हैं, लेकिन मुसलमान वहां मस्जिद होने का दावा कर समस्याएं पैदा कर रहे हैं।

उन्होंने सुझाव दिया कि वहां एक बड़ा मंदिर बनाया जाना चाहिए। उनकी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार को इसके लिए जमीन आवंटित करनी चाहिए और मुसलमानों के उस क्षेत्र में जाने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

नेहरू ने नायर को नौकरी से हटाने का दिया आदेश

रिपोर्ट के आधार पर नायर ने मुसलमानों को मंदिर के पांच सौ मीटर के दायरे में जाने पर रोक लगाने का आदेश जारी किया। दूसरी ओर उन्होंने एक और आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि प्रतिदिन शिशु राम की पूजा की जानी चाहिए। आदेश में यह भी कहा गया कि सरकार को पूजा का खर्च और पूजा कराने वाले पुजारी का वेतन का व्यय वहन करना चाहिए।

इस आदेश से घबराकर नेहरू ने तुरंत नायर को नौकरी से हटाने का आदेश दे दिया। बर्खास्त किये जाने पर नायर अदालत में गए और स्वयं सरकारी आदेश के विरुद्ध सफलतापूर्वक बहस की।

कोर्ट ने दिया बहाली का आदेश

कोर्ट ने आदेश दिया कि नायर को बहाल किया जाए और उसी स्थान पर काम करने दिया जाए। 1952 में उन्होंने सेवा से त्यागपत्र दे दिया। इसी अवदान के चलते वर्ष 1962 में नायर बहराइच और उनकी पत्नी शकुंतला नैयर कैसरगंज से सांसद चुनी गईं। शकुंतला बाद में दो बार और सांसद बनीं।

नायर ने सात सितंबर 1977 को केरल स्थित अपने गृह नगर में अंतिम सांस ली, किंतु मेरे लिए वह सदैव जीवंत रहेंगे। वह न होते तो आज मुझे भव्य मंदिर में रामलला के विग्रह की स्थापना का उल्लासपूर्ण अवसर न मिलता। उन्होंने मेरे राम के लिए किया, तो मैं भी उन्हें आशीष देती हूं कि उनकी आत्मा श्रीराम की शरण में परम विश्राम का गौरव प्राप्त करें।